पर आज ऐसे ही इस कहानी के कुछ आगे के पहलु पर विचार कर रहा था| तो एक असमंजस की स्थिति में पहुँच गया | आखिरकार हम उस कहानी का जहां अंत सोच रहे है|या सोचना चाहते है वो तो शायद कहानी की बरबस शुरुआत है|पर क्या है मेनका एक अभिमानी सत्ता लोभी पुरुष के हाथ की कटपुतली?? जिसने अपनी सुन्दर देह का प्रयोग कर एक तेजस्वी सन्यासी को तप से वासना की राह पर आने को मजबूर कर दिया| निसंदेह यहाँ वासना और आत्मसंयम की जंग में संयम हार गया और वासना की दासता स्वीकार कर ली गई| जहां तक यह कहानी चलती है इसमें सिर्फ पुरुष के भाव- भावना इन्ही का ज़िक्र होता है| इन्द्र का चरित्र चित्रण होता है|विश्वामित्र का भी चरित्र समक्ष आता है| परन्तु इस कथा का एक और किरदार मेनका का जो चरित्र सामने आता है वो मेरे ख्याल से वो एक जिस्म का पेशा करने वाली मालिक की गुलाम वेश्या से अलग नहीं है|और कई लोग मेनका को रूपमती वेश्या के रूप में ही अपनी सोच में लाते है| पर यह उस कला की धनी अप्सरा का बहुत बड़ा अपमान है|मेनका इन्द्र के दरबार की सबसे रूपमती और नृत्य कला में अग्रिम अप्सरा थी|
कहा जाये तो विश्वामित्र का तप भंग होने के पश्चात क्या हुआ| मेनका कहाँ गयी, वासना आवेग से बहार आने पर विश्वामित्र ने मेनका को श्राप क्यूँ नहीं दिया|क्यूँ अपनी तप शक्ति से उन्होंने षड्यंत्र रचियता इन्द्र को श्राप नहीं दिया| शायद कभी यह सोचना आवश्यक नहीं समझा |परन्तु अगर समय धारा के विपरीत इतिहास को देखा जाये |शकुंतला राजा भरत की माता ,इतिहास की जानी-मानी दुष्यंत-शकुंतला की प्रेम कहानी की नायिका को देखे |यह शकुंतला मेनका की सुपुत्री थी| जिसे जन्म देने के बाद शायद वो ऋषि कण्व को सौप कर कहीं चली गयी|मेनका ने ऋषि विश्वामित्र का तप भले ही इन्द्र के कहने पर तोडा था|लेकिन उसकी ऋषि के प्रति प्रेम आसक्ति ने उसके मन की मलिनता को धो दिया था|और कहते है ऋषि और मेनका कई वर्षों तक साथ रहे|मेनका ने एक आदर्श नारी तरह ऋषि की सेवा की|उसने स्वर्ग के सभी सुख त्याग दिए | स्वर्ग में पली सुकोमल मेनका ऋषि के साथ सन्यासिन का कठोर जीवन व्यतीत करने लगी|यह उसका अथाह प्रेम ही था जो उसे ऋषि के पास रोके हुए था |शायद यह मेनका का भी प्रताप था जो उसके नाती भरत में दिखी पड़ता था |मेनका को अपने जीवन तप का कभी कोई फल नहीं मिला|कोई ख्याति नहीं मिली|
एक प्रश्न आता है आखिर क्यूँ ऋषि उसे छोड़ कर चले गए| शायद ऋषि को वैराग्य फिर अपने और खिचने लगा होगा|परन्तु एक गर्भवती स्त्री को यूँ छोड़ कर जाना उचित था |लोक-लाज से उसकी रक्षा करना ऋषि का कर्तव्य नहीं था|क्या मेनका के प्रेम का,उसकी सेवा का उसे ये पुरुस्कार मिला की उसे अपनी ममता का लोक-लज्जा की खातिर त्याग करना पड़ा|परन्तु किसी ने कभी विश्वामित्र पर ऊँगली नहीं उठाई|चूँकि यह एक स्त्री के अधिकार व भावना की बात थी|जो हमारे समझ के लिए कोई मायने नहीं रखती|
हमारे समाज में मेनका का क्या चित्रण है यह किसी से छुपा नहीं है |उसके हर गुण को छुपा कर सिर्फ एक कृत्य से उसे एक उपाधि दे दी गयी है| जैसा की हर व्यक्ति के साथ होता है| हम सत्य का पूर्ण रूप देखने के कभी इच्छुक नहीं होते है|सदैव अपनी लालसा अथवा जरूरत जितना सत्य देख हम सत्य ज्ञान का दवा करते है|इसीलिए कभी हम सत्य का अच्छा तो कभी बुरा भाग चूक जाते है |
वैसे भी हम स्त्रियों को नायिका के रूप में देखना कभी पसंद नहीं करते है|हमारे समाज में आज भी स्त्रियों को अनुनय-विनय का प्रसाधन,अथवा घर गृहस्थी संचालन के कार्य में ही स्वीकार किया जाता है|हालाँकि आज स्त्रियां उससे काफी आगे बढ़ गयी है|परन्तु आज भी हमारी सोच वही अटकी हुए है|हम स्त्रियों के गुणों की गाथा सुनना पसंद नहीं करते|बल्कि पुरुषों की शौर्यगाथा,प्रेम-प्रसंग में बहुत दिलचस्पी लेते है|
आज मेनका हर नारी का दर्पण है| कभी ना कभी किसी ना किसी तरह किसी ना किसी प्रयोजन से पुरुष उससे क़ुरबानी मांग ही लेता है| चाहे अपना मायका छोड़ ससुराल जाने की रीत हो |बच्चों के जन्म पर अपनी आजादी त्यागने की बात हो|चाहे शादी के बाद अपने पहनावे को बदलने, पर्दा करने आदि रीती रिवाज |पुरुष अपने स्वार्थ के लिए उसका प्रयोग करता है|और नारी सहर्ष मन जाती है|फिर भी अपनी प्रेम भावना से वो सभी को सुख देने का प्रयास करती रहती है|
खो गयी मेनका कहाँ इतिहास के पन्नों में
शायद बस गयी वो हर नारी के जीवन में
त्याग कर अपना हर सुख वो देखो
कर रही उजियारा घर-घर में
त्याग कर अपना हर सुख वो देखो
कर रही उजियारा घर-घर में